The Unadorned

My literary blog to keep track of my creative moods with poems n short stories, book reviews n humorous prose, travelogues n photography, reflections n translations, both in English n Hindi.

Thursday, May 28, 2009

The Fog


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Nostalgic moments extract the best out of us; the twinkles of wistfulness emerge in colourful embellishment. And then poetry emerges out of the fuzzy ambiance. So is my feeling as I recall a poem from my book of poem, "In Harness" ISBN 81-8157-183-5.
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The Fog
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Social green is awash in political white
A coat of primer is a must, before re-toning
The old turns hazy, the new is promised
All know the fog would dissipate soon.

Confused passers-by flounder for direction
Even the nearest ones sadly appear marauders
Believer turns sceptic under the weighty dampness
We bump into each other, ignore, and disappear.

Fog showers heavenly ambience on everything mundane
Even the soothing moon has so far failed to achieve that
People catch sudden affluence and stink in the neighbourhood
It is true, people get used to it and fog showers the legitimacy.

We all pray in silence for the Sun to reappear
And fight for our right and restore them to us
The God incarnates when world is inundated
By the deluge of white lie and its embankments swept.
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Bhubaneswar
27-10-2003
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By
A. N. Nanda
Muzaffarpur
28-5-2009
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Saturday, May 16, 2009

My Speech


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It was the desire of Mr Arun Kamal that I should also speak on the occasion of release of my book "विरासत" and that was conveyed to me just a day in advance. Honestly I was only waiting to listen to what people had to say about my book, not the other way round. Whatever I had to tell I had already written in the book and what more was there for me to tell? Anyway I took it as a formality and prepared a small speech. And I was the third, or maybe the fourth speaker. As I could observe from the attention of the audience, my speech was not all that bad. In fact after the function there were a few words praise for my speech. I thought I'd reproduce that in my blog.
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ट्रेन बिहार होकर गुजर रही है और यह आकर किसी एक स्टेशन पर खडी हो गई मैं ठहरा एक भूखा सवारी खिड़की से झांक कर देखा, कचौड़ीवाला कचौड़ी बेच रहा था मै तुंरत अपनी डिब्बे से नीचे उतरा और कचौड़ीवाले से कहा, 'भाई कचौड़ीवाले, मुझे दो कचौड़ी दो ' बस, मुझे कचौड़ी मिल गई और साथ ही मिल गया भूख से छुटकारा

क्या इतनी हिन्दी कहानी लिखने के लिए काफी नहीं है ?

इस बात को जरा आगे बढ़ाता हूँ मान लीजिए हिन्दी के एक प्रकांड विद्वान् ने मुझे अशुद्ध हिन्दी बोलते हुए सुना और मेरे पास आकर कहने लगा, 'देखो हिन्दी बिगाड़ने वाले नालायक "दो कचौड़ी" ऐसे कह कर बात को बिगाड़ो मत कहो "दो कचौड़ियाँ" दीजिए ' और मैंने ऐसे कहने हेतु प्रयास किया, करते गया ऐसे ही मेरी गाड़ी छूट गई।

अब क्या हुआ ? मैं कचौड़ी खा पाया, आगे जा पाया कहानी लिखने की बात तो पूछो मत जब मैं भूखा ही रह गया, कहानी भी भला कैसी बनती ? जैसे पंडित कालिदास ने कहा, "अन्न चिंता चमत्कारा कातरे कविता कुतः ?"

अगर इसे मैं सचमुच कहानी बना दूँ, तो क्या होगा इसका शीर्षक ? "पंडित से मुठभेड़" या "कचौड़ी या गाड़ी" ?

अब रही बात कि "विरासत" में सारी की सारी कहानियाँ सिर्फ़ डाकघर पर क्यों ? देखिए, अंग्रेजी में कहाबत है, "All work no play makes jack a dull boy." जब तक सच को कहानी जैसी रोचक और कहानियों को सच जैसा जीबंत नहीं बनाएँगे, तब तक जिंदगी में रूखापन ही रूखापन बरकरार रहेगा कहते हैं साधारण को असाधारण और असाधारण को साधारण कर प्रस्तुत करना कवि-लेखकों का काम होता है डाकखानों में तो साधारण लोगोंका आवागमन होता ही है फिर कहानी लिखने हेतु डाकघरों के अलाबा क्या बेहतर जगह और कहीं हो सकती है, भाई ?

अब मेरे मन में और एक बात उठती है क्या बजह है की आजकल लोगों की पढ़ने के प्रति दिलचस्पी सचमुच कम हो गई है ? टी वी, इंटरनेट पर दोष देकर क्या बात को ऐसे टाला जा सकता है ? मेरे ख्याल में कहानी सुनाना बड़े-बुजुर्गों का काम होता है और कहानी सुनना बच्चों का आज के माहौल में बड़े-बुजुर्ग होते ही हैं कहाँ ? सब जगह तो एकल परिवार माता-पिता भी कहानी सुनाने का काम कर पाते, पर उन लोगों के पास समय कहाँ है ? आजकल लोगों के पास समय कम और पैसे ज्यादा होने लगे हैं

दूसरी बजह है हमारा साइंस और इंजीनियरिंग पर जरुरत से ज्यादा ध्यान देना मुझे सुनने को मिली है कि आजकल इतिहास और राजनीति विज्ञानं जैसे विषयों में कॉलेज-विशवविद्यालयों में छात्रों का अभाब होता है इसे दुर्दशा नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे ? भाई, liberal arts का अपना महत्व होता है, जिसे टाला नहीं जा सकता है उदहारण के तौर पर मशहूर वैज्ञानिक Leonard Da Vinci की बात पर विचार करें वे केवल एक बैज्ञानिक थे, वे तो विश्वविख्यात चित्रकार भी थे और एक उदाहरण भी आधुनिक युग से लेते हैं नाम है Steve Job, जिन्होंने Apple Mac Computer, iPod जैसे युगांतकारी यन्त्र दुनिया के सामने रखा है वे तो वैज्ञानिक होने के साथ साथ एक कालिग्रफिस्त (calligraphist) भी थे इसलिए ज्ञान के क्षेत्र में संतुलन बनाए रखने हेतु हमें कहानी लिखना, पढ़ना, सुनना और सुनाना नितांत आवश्यक लगता है अगर मुझे अपना उदहारण देने की इजाज़त है, तो मैं कहूँगा Software Engineering और कहानी लिखना दोनों में सृजनशीलता की अभिव्यक्ति हो सकती है, लेकिन जहाँ तक आनंद लेने की बात है, कहानी लिखना और सुनाना सबसे ज़्यादा आनंददायक होता है

अब मेरे मन में और एक बात कौंध रही है लोग साहित्य साधना करते-करते गरीब हो जाते हैं या गरीब जनों को साहित्य साधना करने का सौभाग्य प्राप्त होता है ? जब गरीब लड़की ससुराल जाती है, वह रोती है और रोते-रोते वह मार्मिक कविता सुना कर चली जाती है दूसरी और जब शहर में पली अमीर लड़की शादी करती है, वह बिदाई के समय सिर्फ़ "bye" कहकर चली जाती है

तो सवाल है, क्या तरक्की की रास्ते चलते हुए हम साहित्य की देखभाल कर पाएँगे ? या साहित्य की देखभाल करने हेतु हमें गरीब रहना पड़ेगा ? कहीं कहीं हमें जवाब ढूंढ़ लेना चाहिए अभी, तुंरत बरना, साहित्य मरने ही वाला है
?"
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By
A. N. Nanda
मुजफ्फरपुर
17-05-2009
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Wednesday, May 13, 2009

"Virasat" My New Book


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My new book "Virasat", the first one in Hindi from my desk, finally got released at Patna yesterday. Mr Arun Kamal, the noted author and poet of international repute released it in the presence of the chief guest of the function Dr Imtiaz Ahmed, Director of Khudabaksh Library. Mr Vyas Ji, the novelist and presently working as the Chief Secretary Deptt. of Labour under Govt. of Bihar was the chief speaker. Mr Arvind Pandey, DIG (Railways) and the eminent blogger (http://paraavaani.blogspot.com/) was the special guest. Mr Kamleshwar Prasad, the Chief Postmaster General of Bihar was the honoured guest. Mr Jitendra Sahay, the Civil Surgeon (Retd.) and dramatist presided over the function. Mr Rajesh Shukla, Proprietor, Vatayan Media and Publishing conducted the proceedings.

The function was well-attended, by all standards. The conference hall of Bihar Industries Association was full to the capacity. People representing various streams--poets, authors, novelists, dramatists, critics, philatelist, lecturers, civil engineers, trade union leaders, journalists from both print and electronic media, my colleagues from various postal establishments, my country-cousin Oriyas, my senior colleagues enjoying quiet retired life in the city, and even an ex-MLA--attended the function.

I honestly did not expect that senior fellows from the field of literature that assembled there would speak so generously about my work. First of all, they allayed my worst fear, saying that I've been really successful in maintaining the nuances that are special to Hindi. Yes! Hindi is not my mother tongue and the book is an attempt just like that without any serious preparation in grammar and style. The stalwarts, in their own words, praised my power of observation, the love for detail, the skilful portrayal of human relationship, the pace of the story-telling…. Mr Arun Kamal himself even highlighted that the book is the first of its kind, culling stories entirely from post-office settings!

I could continue, extracting verbatim what all they said from the full-length video recorded during the function, but then it would entail a bit of labour on my part. Besides, I don't forget that a blogpost should not be so long-winded.

Almost all the newspapers from Patna covered the event in detail with suitable photographs. To name them: (1) Hindustan Times. Patna, Tuesday, May 12, 2008 under caption-'A Peep into post offices with "Virasat"'; (2) Hindustan 13 May (in Hindi) Page-4 "विरासत में डाक विभाग का चित्रण"; (3)Aaj, Patna, 13 May Page-4 "डाक संस्कृति की अमूल्य कृति है 'विरासत'"; (4) Dainik Jagaran, Patna, 13 May, Page-7 "कहानी संग्रह 'विरासत का लोकार्पण"; (5)Rashtriya Sahara, Patna, 13 May, Page-5 "इंटरनेट युग में डाकिया खास : कमल" . I could not watch television, but going by the interview taken from me, Etv might have telecast it.
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By
A. N. Nanda
13-05-2009
Muzaffarpur
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