Ek Saal Baad--A Relook
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Almost a year ago, Dr Mahalakshmi, the H. O. D. of Hindi Department, Nehru Mahavidyalay, Malumuchampatti, Coimbatore-50 had given me this review of my book "Ek Saal Baad". This happens to be the first and the only review of the book that has been attempted by a south Indian reader of mine. Dr Mahalakshmi is no ordinary reader; with a Doctorate in Hindi literature behind her, she is eminently qualified to take up review of any book in Hindi, Tamil, Sanskrit and English. Having a Hindi lover in South India like Dr Mahalakshmi is a sign of definite strength for popularisation of the national lingua franca. Going through this I was so moved by the gesture that I had immediately assured her to get it published. Somehow I could not. Now that the time to leave this lovely city of Coimbatore has finally arrived, I thought I could publish this as a blog post. At least it would get some more readers. The review is quite thorough and it shows enough proof that she has gone through each and every story in this collection. At this point I can only thank her...the beautiful soul in her that loves Hindi and a humble Hindi lover like me.
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हिन्दी साहित्य की सेवा में हिन्दीतर भाषियों का योगदान सदैव रहा है। उस श्रृंखला में श्री ए. एन. नन्दजी ने भी अपने को जोड़ ली है। इनके कहानी-संग्रह 'एक साल बाद' में 30 कहानियाँ संग्रहित हैं। तीसों कहानियाँ एक दूसरे से भिन्न होकर एक नया संदेश पाठकों के सामने रखती हैं।
'बिदाई' कहानी एक पिता - बेटी के संबेदनशील रिश्ते को उजागर करती है। 'छोटू और शंकी' कहानी बचपन की आकांक्षाओं एबं माता - पिता और बच्चे के बीच के कोमल रिश्ते को दर्शाती है। 'मुछंदर का कमाल' प्राचीन काल की वास्तविकता पर करार व्यंग कराती है। यह सिर्फ सत्य को ही नहीं बल्कि उसके पीछे दोहरे मतलब को भी समझाती है। 'गंगा-यमुना' वास्तविक जगत की काल्पनिक घटना है जिसमें दो बहनों में तुलनात्मक दृष्टिकोण की परछाई दिखाई गई है। 'आखरी जंग' हर गृहस्थी में होनेवाली पति - पत्नी के बीच में मन मुटाव को दर्शाती है। 'सर्वहारा' कहानी दो भिन्न विचार के व्यक्तियों के बीच मित्रता का बेहद सुन्दर संगम का चित्रण देती है। 'अम्माँ' यह कहानी लेखक की एक कोशिश है, कहानी को सत्यता की चौखट तक ले जाने की। 'चार्वाक का चंगुल' यह एक ऐसे व्यक्ति की घटना है, जो है तो एक आम आदमी परन्तु तरक्की होने के साथ - साथ वह अपने प्रियजनों की ज़रूरतें पूरी करने के लिए क्या करता है, इसका चित्रार्थ है यह कहानी।
झूठ-मूठ : यह कहानी एक साधारण-सी वस्तु के असाधारणीय मोल को उजागर कराती है। राज पोखर नामक एक तालाब के इर्द-गिर्द घूमती यह कहानी मानवीय मानसिकता का अतुलनीय उदहारण है।
तलाश: एक साधारण व्यक्ति की अपने स्वरूप के लिए असाधारण खोज है।
हुक्मबरदार: यह कहानी परिवार की वृद्धा 'दादी मां' के बारे में एक ह्रदय तात्विक कहानी है।
कमरा नंबर साढ़े 3: यह कहानी मानवीय मनोविज्ञान के ऊपर एक व्यंग साधन है। यह एक ऐसी कहानी के बारे में है, जो ज्यादा खास तो नहीं, पर लेखक के नाम परिवर्तन के बाद सबको खास लगने लगती है।
मकान मालकिन: मानव की मनोस्थिति की बहुत आम परन्तु अलग लेख।
खैरात: व्यक्ति के जीवन में मूल वस्तुओं की विशेषता बताती कहानी।
एक साल बाद: एक आदर्श जवान दम्पति आशीष एवं मानसी के वैवाहिक जीवन पर प्रकाश डालते हुए मानसी के द्वारा यह बताया गया है कि परिस्थिति के अनुसार स्त्री का मानसिक परिवर्तन अति स्वाभाविक है।
जाते-जाते : व्यक्ति के अंतिम क्षणों को दर्शाती एक कहानी।
गोदावरी: एक मामूली - सी लड़की का जीवन संघर्ष है गोदावरी।
सदगति के लिए: वैवाहिक जीवन की विडम्बना है - सदगति के लिए।
आधी रात की बिरयानी: यह वैवाहिक जीवन के कुछ हसीन झूठों को दर्शाता है।
राज की बात: पति -पत्नी के जीवन में एक दूसरे के छोटे - छोटे राजों को समझती है राज़ की बात।
घाटा: मानव की मानसिकता में फायदे एवं नुकसान को दृष्टिगोचर कराती है यह कहानी।
आज़माइश: मानव जीवन के उतार - चढाव की कहानी है आज़माइश।
साया: स्त्रीयों की विचारधाराओं को प्रकट कराती है यह कहानी।
अगली छुट्टी में: यह एक ओझे एवं एक अनाथ बालक की कहानी है जो मानव का मानव के प्रति रुख उजागर करता है।
वैद्यनाथधाम विद्यागाह: यह कहानी एक ऐसे व्यक्ति के बारे में है जो आर्थिक कमजोरी के होते हुए भी खुद को कमज़ोर नहीं मानती थी।
रानीबाई: एक निम्नस्तरीय नारी की रुचिपूर्ण कथा है रानीबाई।
कल्पवट: शहरीकरण में पर्यावरण पर हो रहे मानवीय दुष्कर्मों की झाँकी है।
बाबा: यह एक भ्रष्ट शहर के रूप में भविष्य में उठ रहे भ्रष्ट समाज को दर्शाता है।
अधूरी मुलाकात: एक बेजुबान जानवर की विचित्र कहानी है यह।
किताब से बाहर: इस कहानी में यह दर्शाया गया है की हमें अपने से बड़ों की बात तब माननी चाहिए जब उस बात का फल मिलने के आसार हो। कभी - कभी बड़ों की नासमझी हमारे जीवन को दु:खमयी बना देती है। मगर हमें बड़ों की बातों पर सोच - विचार कर अमल करना चाहिए और नज़रअंदाज़ भी नहीं करना चाहिए।
वर्णनात्मक शैली लेखक की खासियत है। उर्दू शब्दों का अधिकाधिक प्रयोग देखने को मिलता है। मुहावरों का प्रयोग हर कहीं बड़ी सफलता से की गई है की गई है कि वह पाठकों को भाषा की असली मज़ा लेने में मज़बूर कर रहा है।
एक ओडिया मातृभाषी ने उत्तम हिंदी कथाकार के रूप में अपने को प्रस्तुत करके यह निरुपित कर दिया है की भाषा कभी हिंदी साहित्य सृजन में रुकाबट पैदा नहीं कर सकती है। बस, "जहाँ चाह वहाँ राह"।
मैं स्वयं एक अहिन्दी भाषी हूँ। तमिलनाडु प्रान्त में पली बढ़ी। इनकी रचनाओं को पढ़कर मुझे लगता है की मेरे जैसे अहिन्दी भाषियों के लिए लेखक श्री ए एन नन्दजी एक प्रेरणा स्रोत हमेशा बने रहेंगे।
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By
Dr K V Mahalakshmi
Head of the Department
Shri Nehru Mahavidyalaya of Arts and Science
Malumuchampatti
Coimbatore - 50
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Labels: Book Review, Exal Baad, People n Places
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