कन्या-पूजन
क न्या - पू ज न
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सुनयना आज घर आई थी
एक बार फिर, अपनी इच्छा से
कितनी प्यारी-सी बच्ची है वह
कितनी नन्ही-सी, किसी दूसरी की बेटी ।
मेरा लाड़ करना उसे पसंद आ गया शायद...
शबनम-से लबों पर तुतलाती वाणी
चाहत-भरी आँखों से कौतूहल का सैलाब
जिंदादिल, हँसमुख, बाल-चंचल ।
दोस्ती के लिए उम्र का हिसाब क्या ?
अनावश्यक, बेजान तत्वों की दकियानूसी सोच
और चरम क्रूरता से लैस मनोभाव है वह ।
उसकी लाख शरारतें मंजूर है मुझे
कुछ भी फरमाइश करे वह
मैं तैयार बैठा हूँ, पर वह सुनयना है
शिष्ट-सुशील है, सयानी भी
कूट-कूट कर भरा है संस्कार उसमें
तो भला कैसे करती फरमाइश वह ?
माँ से ज्यादा प्यार जताती जो
डायन है वह, क्या पता नहीं तुझे?
क्या सुनाती होगी सुनयना
अपने घर जा कर ? अपनी माँ से ?
मेरे बारे में, क्या है इस दोस्ती की परिभाषा ?
कैसा होता होगा संवाद दोनों के बीच ?
जानती हो, तुम जैसा प्यार करने वाला
मिल गया है, माँ, कोई मिल गया है
कितना दिलकश, कितना उदार !
वह तुम्हारे बारे में ही पूछता है अक्सर
मेरा नाक, मेरे होंठ, मेरे बाल, मेरी आँखें
सब तुम्हारी जैसा हैं माँ, हु-ब-हू
ऐसा कहता है वह,
पूछता है वह अक्सर, मम्मी कैसी हैं
मम्मी क्या करती हैं, क्या-क्या पसंद है मम्मी
की
क्यों नहीं आ कर खुद पूछ लेता है वह ?
रजनीगंधा की तारीफ़ में मशगूल लाख कद्रदान...
सपनों में सैर कर मुकाम तक पहुँचना
मुश्किल है, कहाँ मिलेंगे तुम्हें मील के पत्थर?
कौन बताएगा यह सुस्ती का है संकेत ?
घर बैठे इस महक के गुणगान से आगे जाना होगा
आस-पास मंडराना होगा, करना होगा खुद को काबिल
सपनों के रेशमी बंधनों से खुद को रिहा कर ।
कौन बताए उसे, सुनयना केवल बच्ची है
मेघदूत की कठिन ज़िम्मेदारी
न समझ सकती है वह
न व्यक्त करने के आसमानी मार्ग
की दूरी भाँप सकती है वह ।
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By
A. N. Nanda
23-10-2015
Trivandrum
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Labels: Hindi Poems
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