The Unadorned

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Friday, October 23, 2015

कन्या-पूजन


क न्या - पू ज न

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सुनयना आज घर आई थी

एक बार फिर, अपनी इच्छा से 

कितनी प्यारी-सी बच्ची है वह

कितनी नन्ही-सी, किसी दूसरी की बेटी

मेरा लाड़ करना उसे पसंद आ गया शायद...

शबनम-से लबों पर तुतलाती वाणी

चाहत-भरी आँखों से कौतूहल का सैलाब

जिंदादिल, हँसमुख, बाल-चंचल ।

दोस्ती के लिए उम्र का हिसाब क्या ?

अनावश्यक, बेजान तत्वों की दकियानूसी सोच  

और चरम क्रूरता से लैस मनोभाव है वह ।

उसकी लाख शरारतें मंजूर है मुझे

कुछ भी फरमाइश करे वह

मैं तैयार बैठा हूँ, पर वह सुनयना है

शिष्ट-सुशील है, सयानी भी   

कूट-कूट कर भरा है संस्कार उसमें

तो भला कैसे करती फरमाइश वह ?

माँ से ज्यादा प्यार जताती जो  

डायन है वह, क्या पता नहीं तुझे?

क्या सुनाती होगी सुनयना

अपने घर जा कर ? अपनी माँ से ?

मेरे बारे में, क्या है इस दोस्ती की परिभाषा ?

कैसा होता होगा संवाद दोनों के बीच ?     

जानती हो, तुम जैसा प्यार करने वाला

मिल गया है, माँ, कोई मिल गया है

कितना दिलकश, कितना उदार !

वह तुम्हारे बारे में ही पूछता है अक्सर 

मेरा नाक, मेरे होंठ, मेरे बाल, मेरी आँखें

सब तुम्हारी जैसा हैं माँ, हु-ब-हू

ऐसा कहता है वह,

पूछता है वह अक्सर, मम्मी कैसी हैं

मम्मी क्या करती हैं, क्या-क्या पसंद है मम्मी की  

क्यों नहीं आ कर खुद पूछ लेता है वह ?

रजनीगंधा की तारीफ़ में मशगूल लाख कद्रदान...

सपनों में सैर कर मुकाम तक पहुँचना  

मुश्किल है, कहाँ मिलेंगे तुम्हें मील के पत्थर?

कौन बताएगा यह सुस्ती का है संकेत ?    

घर बैठे इस महक के गुणगान से आगे जाना होगा

आस-पास मंडराना होगा, करना होगा खुद को काबिल  

सपनों के रेशमी बंधनों से खुद को रिहा कर ।

कौन बताए उसे, सुनयना केवल बच्ची है

मेघदूत की कठिन ज़िम्मेदारी

न समझ सकती है वह

न व्यक्त करने के आसमानी मार्ग

की दूरी भाँप सकती है वह ।
  
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By
A. N. Nanda
23-10-2015
Trivandrum
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