An Eminently Readable Poem
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This is a poem in Hindi that came in the February-2015 issue of वागार्थ and I found it eminently readable that provides penetrating insights into the creative process and its motivation. Thought, I could scribble something sensible in the shape of reader's impression. Here is what I could produce. I've the poet's permission to do that.
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मेरे गर्भ में चाँद: संवेदनाओं का
गुलदस्ता
--ए एन नन्द
सर्जनात्मक अहसास
जादुई होता है । वह प्रस्फुटन-सा है, आकस्मिक है, और निस्तब्ध भी
। सृष्टि की संभावना घटना-श्रुंखला के रूप में वास्तविकता की सतह पर दस्तक देने के
एक पल पहले तक भी सृष्टि कर्ता को इसका पूर्वानुमान शायद ही होता होगा । फिर भी स्रष्टा
अपनी सृष्टि का पूरा-पूरा श्रेय लेना चाहता है । सृष्टि के समय जो वेदना होती है
और उसके उपरांत अपने निर्माण के साथ जो लगाव होने लगता है तथा उस आत्मतुष्टि का बोध
जो उसे अभिभूत कर देता है—उन सबके निचोड़ को ही सृजनात्मकता का नाम दे देता है ।
केवल वेदना और लगाव,
दोनों सृजनशील परितंत्र का विधान नहीं करते हैं । इसको समझने के लिए कुछ ख़ासी योग्यता
की आवश्यकता होती है । क्या दुनिया की सभी माताएँ यीशु, कान्हा, शुद्धोदन जैसी आत्माओं
को जन्म देती हैं? क्या सबकी लेखनी से “कफ़न” और “काबुलीवाला” जैसी कहानियाँ निकलती
हैं? क्या सबके गुनगुनाने पर “एकला चलो रे” और “देहि पदपल्लवमुदारम्” जैसी युगांतकारी
पंक्तियाँ रची जाती हैं? सृष्टि के रहस्य को वही समझ सकता है जो सृजन के समय
दृश्यपटल में होने वाले हर परिवर्तन को भाँपने में सक्षम है, जिसको सृष्टि के हर
मकसद के बारे में जानकारी हासिल है, जो विशाल सृष्टि में स्रष्टा की अहमियत को
प्रत्यक्ष समझ सकता है । आसमान में तारों का अभूतपूर्व ढंग से चमकना, स्वर्ग से
पुष्प वृष्टि होना, बंदियों के पैरों से बन्धन एकाएक खुल जाना, बेवक्त चमेली का महकना—ऐसे
जादुई संयोग भी सृष्टि का अटूट हिस्सा हैं ।
शेफाली की कविता
“मेरे गर्भ में चाँद” ने कुछ ऐसी भावनाओं को उजागर किया है । मानव का आविर्भाव
कुदरत के लिए भी हर्ष लाता है यानी यह कुदरत की करिश्माई उपलब्धियों में से अनन्य है
। एक साधारण मानव इस सृष्टि प्रक्रिया का माध्यम हो कर असाधारण बन जाता है, उसका
डूबता सितारा बुलंद होता है, उसे अमावस की रात में भी आसमान आलोकित मिलता है । नश्वरता
के अहसास से भयभीत मानव जब सृष्टि के इस रहस्य को समझने लगता हे, जन्म-मृत्यु उसे
निरंतरता बनाए रखने की कुदरती रीति के रूप में दिखाई देती है । वह अपनी संतति के
माध्यम से जी कर मृत्यु को परास्त करने की अपनी शक्ति से रूबरू हो जाता है । अपनी
कहानी, कवितायों को शस्त्र बना कर विस्मृति के आक्रमण को प्रतिहत करना सीख जाता है।
कविता की भाव-चेतना मानव
की सामग्रिक स्थिति को लेकर ही है जहाँ दुनिया के तमाम बच्चों को विहँसना होता है,
माँओं को एकत्र होकर मातृत्व की हिमायत करनी होती है, चारों ओर मुस्कराहट,
किलकारियों की गूँज से परिवेश मुखरित होता है और तब जाकर आस्था की परिभाषा
मानवीयता के अनुकूल बन जाती है । मातृत्व कोई शर्मिंदगी नहीं; यह वर्तमान व भविष्य
के बीच सेतु है, विवर्तन का मधुर संगीत है । एक अर्थ में, यह प्रचलित दुनिया में अपना-पराया भाव,
क्रूरता, लिंग-भेद आदि संकीर्ण प्रवृति की भयावहता से बच्चों को दूर रखने का
संकल्प लेता है, इस कदर अशिष्ट व्यवहार सिखाने वालों को किलकारियों से, लोरियों से
और मुस्कराहटों से मुग्ध कर जीने की असली सीख देता है और वे लोग मस्जिद-गिरजा-मंदिरों
से निकल कर सृष्टि कर्ता के सामने सिर झुका लेते हैं ।
इस सामग्रिक स्थिति
के भाव को लेकर कवयित्री ने और एक दिशा की ओर इंगित किया है । यह सूक्ष्म रूप से
क्यों न हों, पर संकेत कन्या भ्रूण हत्या की ओर है । इसलिए माँओं को एकजुट होकर
आँचल फैलाना पड़ता है ताकि उन निर्बल आत्माओं को समूह-संहार से बचाया जा सके । यह
बिन ब्याहे मातृत्व की ओर भी इंगित करता है जिसके नाते भयंकर पीड़ा से तड़पती माता
को समाज छोड़ कर जंगल जाना पड़ता है पर माँओं का सहारा उसे जीने के लिए प्रेरित करता
है ।
भावनाओं की गहराई से
अपना पोषण लेने वाली कविता जब कभी शब्दों के उथले सतह में दिखाई पड़ती है, हम उसको पकड़ने
की कोशिश करते तो हैं, पर कामयाबी कभी-कभार मिलती है । इस रहस्यमयता के चलते कविता
विधायों में श्रेष्ठ कहलाती है । शेफाली की कविता “मेरे गर्भ में चाँद” तात्पर्य
से भरी है, रूपकात्मक है और पहली पंक्ति से लेकर अंत तक बेहद सार-गर्भित है ।
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शिमला
दिनांक 20-03-2015
Labels: Book Review, Hindi Poems
1 Comments:
Sir nice post.Its my request to please change the blog template so that We can read post easily.
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