The Unadorned

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Saturday, September 20, 2025

एक भूली-बिसरी देवी

 



एक भूली-बिसरी देवी

एक बार, भोर के चार बजे, जब मैं भुवनेश्वर रेलवे स्टेशन जा रहा था, मेरी नज़र एक जोड़ी फूल तोड़ने वालों पर पड़ी। वे चाँदनी फूल की झाड़ी, जिसे यहाँ के लोग टगर कहते हैं, से आख़िरी फूल तोड़ रहे थे, बिना झिझक उसे बिल्कुल नंगा कर देने में लगे थे। हम आम तौर पर आख़िरी फूल नहीं तोड़ते; किसी पेड़ को पूरी तरह फूल से खाली कर देना उस पर किया जाने वाला सबसे बड़ा अपमान माना जाता है। लेकिन इस शहर के निशाचर फूल-तोड़ने वाले एक अलग ही नस्ल के हैं।

कसाई जब जानवर को मारता है, तो उसमें भी एक तरह की करुणा होती है—कम से कम इतना विश्वास कि आख़िरी पीड़ा सबसे कम होनी चाहिए। मगर ये फूल-तोड़ने वाले? ये निर्दयी, निष्ठुर और लगभग पूरी तरह बेपरवाह होते हैं। और यह सब वे उन पेड़ों के साथ करते हैं, जो उनके अपने भी नहीं होते। क्या मैं इन्हें चोर कहूँ? राय अलग-अलग हो सकती है, क्योंकि ये अपने लूटे हुए फूल अंततः देवताओं के चरणों में ही चढ़ाते हैं।

ये निशाचर फूल-तोड़ने वाले, अपनी तथाकथित रात की तस्कर-दृष्टि के बल पर, अँधेरे में भी वही दक्षता दिखाते हैं जो उजाले में दिखा सकते हैं। यदि कोई फूल उनकी पहुँच से बाहर खिला हो, तो वे बिना झिझक कोमल डाल ही तोड़ डालते हैं, चाहे अपनी टेढ़ी-मेढ़ी लोहे की लाठी से कितना भी कुरेदना पड़े। उन्हें देखते हुए मन में आया कि गाड़ी से उतरकर उन्हें डराऊँ—कह दूँ कि इन झाड़ियों में ज़हरीले साँप छिपे हैं! यह एक शहरी मज़ाक़ होता, जैसे नालियों में मगरमच्छ की अफ़वाह।

साँप का ख़याल आते ही मैं पल भर में अपने बचपन की ओर लौट गया—अपनी बहन की फूल तोड़ने की कहानियों की ओर। ध्यान से सुनिएगा—यह किस्सा आपको साठ बरस पीछे ले चलता है।

हमारे गाँव में वसंत ऋतु का एक उत्सव होता था, जिसे हम कोयल देवताओं के नाम पर मनाते थे। व्याकरण की दृष्टि से इसे कोयल देवी कहना उचित लगता, पर ऐतिहासिक रूप से इसे देवता ही माना जाता था, क्योंकि व्रत रखने वाली लड़कियाँ कोयल में अपने भावी पति की छवि देखती थीं। छोटी कन्याएँ मिट्टी से कोयल की एक जोड़ी की नन्ही प्रतिमाएँ गढ़तीं और उन्हें अपने घर की कच्ची दीवारों की ताक में रख देतीं। पाँच से सात दिनों तक ये कच्ची मिट्टी की मूर्तियाँ फूलों की बहार से पूजी जाती थीं।

फूलों की माँग इतनी अधिक होती कि व्रत रखने वाली लड़कियों के बीच एक मौन प्रतियोगिता छिड़ जाती—कौन सबसे पहले उठकर सबसे अच्छे फूल तोड़ेगा। और ये सारे वसंतकालीन फूल होते—अमलतास, सिमली (सेमल), गुलमोहर, और कभी-कभी आम के फूल भी, अगर वे देर से खिले हों।

सबसे पहले पहुँचने वाली टोलियाँ टोकरी भर-भर कर लौटतीं और कभी-कभी अपनी सहेलियों को भी फूल उधार देतीं—एक अनोखा “फूल ऋण बाज़ार” बन जाता। यदि किसी दिन देने वाली सो गई, तो वही पहले की उधारी लेने वाली उस दिन उसे फूल लौटा देती। इस तरह पूजा, अर्थव्यवस्था और दोस्ती तीनों इस सुवासित रस्म में गुँथ जाते।

कोयल देवताओं को मुरमुरे अथवा चिउड़े का चूर्ण, कच्चे आम की लेई और गुड़ के साथ गूँधा हुआ चढ़ावा मिलता। यह वसंत का अपना प्रसाद था—आम अधपके, फूल पूरे शबाब पर। लड़के, यद्यपि प्रायः बाहर रखे जाते, किनारे मंडराते रहते। केवल चहेते ही प्रसाद में भाग पाते।

सप्ताह के अंत में लड़कियाँ कोयल प्रतिमाओं को दीवार की ताक से निकालकर आम के पेड़ों की डालियों पर रखतीं और विदाई के लिए गातीं:

हे प्रिय कोयल, क्या सचमुच अब जा रहे हो?

जब तक आम की बौर न आएगी, लौटोगे नहीं?

आने वाला साल हमें बहुत भारी लगेगा,

फिर भी गाना मत छोड़ना, हमें याद रखना।

यहीं से मेरी कहानी शुरू होती है।

एक बार, मेरी बहन और उसकी सहेली सुबह साढ़े तीन बजे एक दूर के अमलतास पेड़ के लिए निकलीं। स्थानीय लोग उसे वरुण पेड़ कहते थे, जो हमारे घर से आधा किलोमीटर दूर था। उस समय वह छोटी लड़की थी; आज वह केवल स्मृति में है—सत्ताईस वर्ष पहले हमें छोड़ चुकी। दोनों साहसी कन्याएँ हल्की चाँदनी के सहारे खेतों की पगडंडी पर बढ़ रही थीं। परंतु पेड़ के पास पहुँचते ही वे ठिठक गईं।

डालियों के नीचे एक धुंधला-सा साया उठक-बैठक कर रहा था। उस घड़ी वहाँ कोई मानव टोली पहुँचने का साहस नहीं कर सकती थी। भय तब और बढ़ा जब वह आकृति उल्टा होकर हाथों के बल चलने लगी, मानो उसके पाँव नाक से निकल रहे हों, जैसे हवाई जहाज़ का लैंडिंग गियर। लड़कियों ने कभी विमान नहीं देखा था, पर वे जान गईं कि यह न मनुष्य है, न पशु। शायद यह किसी आत्मा का आभास था—जमीन से ऊपर तैरती हुई छवि।

अब उन्हें पूरा विश्वास हो गया—यह मानव नहीं, कोई भूत है, या शायद उस वृक्ष का कोई रक्षक देवता। गाँव में कुछ वृक्षों की जड़ों के पास मिट्टी के घोड़े या भूली-बिसरी देवियों की प्रतिमाएँ रखी होती थीं, जिनकी पूजा केवल साल में एक बार—मकर संक्रांति (14 जनवरी) या विषुव संक्रांति (14 अप्रैल) पर होती थी।

डरी-सहमी बहन और उसकी सखी बिना एक भी फूल तोड़े लौट आईं। उस दिन उन्होंने दूसरों से उधार फूल लेकर पूजा की, यह विश्वास रखते हुए कि कोयल देवता उनकी भूल-चूक को क्षमा करेंगे।

गाँव में चर्चा फैल गई। वह रहस्यमय छाया कौन थी? यदि न भूत, न कोई प्रतिद्वंदी, तो क्या स्वयं कोई देवी? किसी ने मेरी बहन की बात पर संदेह नहीं किया—वह अपने आदर्श आचरण के कारण गाँव की आदर्श कन्या मानी जाती थी।

फिर एक ग्रामीण ने स्वप्न देखा कि अमलतास वृक्ष की देवी ने पूजा की माँग की है। इतना काफ़ी था; पूरे गाँव ने उस स्वप्न को स्वीकार कर लिया।

तब से वह अमलतास वृक्ष पवित्र हो गया। हर 14 अप्रैल को देवी को मुरमुरे का चूर्ण और कच्चे आम की लेई तथा गुड़ के साथ गूँधा हुआ प्रसाद चढ़ाया जाता। वही स्वप्नद्रष्टा तब उन्माद में नाचता, सिर झटकता, चमकीली घाघरी पहनकर क्षण भर को मानव से ऊपर देव लोक उठ जाता। और तभी शांत होता जब उसे वह प्रसाद दे दिया जाता।

मेरी बहन और उसकी सहेली को हमेशा इस बात के लिए सराहा गया कि उन्होंने कोयल देवताओं के लिए फूल खोजते हुए एक देवी की खोज की।

और अब मैं सोचता हूँ—क्या भुवनेश्वर के ये लालची रात्रिकालीन फूल-तोड़ने वाले भी कभी ऐसी किसी रक्षक देवी से टकराएंगे? ऐसी देवी जो अपने वृक्ष की पूरी मुस्तैदी से रक्षा करे, और लापरवाह हाथों को काँपते हाथ बना दे। शायद यही एकमात्र उपाय है—जहाँ करुणा विफल होती है, वहाँ अंधविश्वास सफल हो।

तब तक, टगर की झाड़ियाँ भोर से पहले ही नंगी और घायल कर दी जाती रहेंगी—और वह अपनी पीड़ा चुपचाप सहती जाएंगी।

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By

अनन्त नारायण नन्द 

भुवनेश्वर 

20-09-2025 

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15 Comments:

Anonymous Anonymous said...

Nice story. सुंदर पाठ्यांक। 😊🙏🏼

9:20 PM  
Anonymous R S Pathania said...

Nice story. सुंदर पठायंक।

9:21 PM  
Anonymous R S Pathania said...

Nice story. सुंदर पाठ्यांक।

9:22 PM  
Anonymous Anonymous said...

बहुत सुन्दर सर। ग्रामीण परिवेश की अच्छी जानकारी

9:50 PM  
Blogger The Unadorned said...

ब्लॉग में आपका स्वागत। और कहानी संबंधित आपकी राय जानकर खुशी हुई।

10:11 PM  
Blogger The Unadorned said...

शुक्रिया, पठानिया साहब। कहानी आपको अच्छी लगी, यह सुनकर आनंदित हुआ।🙏

10:15 PM  
Anonymous Anonymous said...

अति सुन्दर र चना

4:06 AM  
Blogger The Unadorned said...

कहानी आपको अच्छी लगी, यह जानकर मैं बेहद प्रसन्न हूं। आगे भी इस प्रकार और contents प्रस्तुत करूंगा। ब्लॉग विजिट जारी रखने के लिए अनुरोध।

4:41 AM  
Anonymous Anonymous said...

बहुत ही सुन्दर l

9:41 AM  
Blogger The Unadorned said...

ब्लॉग में गश्त करने हेतु तथा कहानी पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने पर मैं आभारी हूं।

10:22 AM  
Anonymous jayanti hota said...

Beautiful heart touching short story.

4:11 AM  
Anonymous Anonymous said...

Beautiful story.

4:23 AM  
Anonymous Anonymous said...

Beautiful story

4:23 AM  
Blogger The Unadorned said...

Thank you for your appreciation.🙏

4:35 AM  
Blogger The Unadorned said...

I'm so happy to know that you liked the story. My blog has many other posts that you might like. Please do visit them at your convenience.🙏

4:39 AM  

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