The Unadorned

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Monday, September 15, 2025

इम्तिहान में चमत्कार

 


इम्तिहान में चमत्कार

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कुछ ही दिन पहले भुवनेश्वर की एक सड़क किनारे चाय की दुकान पर मैंने एक आदमी को यह कहते सुना कि गायों को सड़कों पर छोड़ना कोई अपराध नहीं है। उसका तर्क था: “गाड़ियों से उठने वाला धुआँ मच्छरों को भगा देता है, इसलिए गायों को सड़क पर रहना गोशाला से कहीं बेहतर लगता है। और जब सर्वोच्च न्यायालय ने कुत्तों को सड़क पर रहने का अधिकार दिया है, तो फिर गायों को क्यों नहीं?”

मेरे पास कोई जवाब नहीं था। और सच कहूँ, मैं किसी बहस में उलझकर ‘गौ-विरोधी’ कहलाने का ख़तरा भी नहीं उठाना चाहता था। लेकिन उसके शब्दों ने मुझे उन दिनों की याद दिला दी जब मवेशियों को सड़कों पर यूँ छोड़ नहीं दिया जाता था, बल्कि वे हर शाम सलीके से लौटकर अपने बाड़ों में आ जाते थे।

तब, जब मैं किशोर था, हर शाम गायें, बछड़े और बैल घंटियाँ बजाते हुए खेतों से लौटते थे। अगर कोई गाय या बैल न लौटे, तो पूरा परिवार भूखा रह जाता जब तक उसे खोजकर वापस न लाया जाए। गाय और बैल परिवार का हिस्सा माने जाते थे, उनका खो जाना अपशकुन माना जाता था।

एक पड़ोसी का बैल एक शाम घर न लौटा। रात भर लालटेन लेकर खोज-खाज हुई—खेतों, रेलवे लाइन, नदी किनारे—पर कुछ पता न चला। सबने खाना खा लिया, मगर घर के मुखिया ने उपवास रखा। ऐसा करना परंपरा के मुताबिक था। दूसरे दिन भी खोज बेकार गई, मुखिया फिर भूखा रहा। तीसरे दिन बारिश-तूफ़ान में खोजी दल कीचड़ में धँसते-लड़खड़ाते लौटे, उनके मशालें गरज-चमक में बुझ-सी गईं। तब गाँव के पंडित ने सलाह दी कि “रिले उपवास” किया जाए—यानी व्रत का बोझ एक-एक सदस्य उठाए। पत्नी ने यह जिम्मेदारी ली।

पंडित जी ने और भी सलाह दी, और उसके अनुसार, बैल का मालिक बीस किलोमीटर दूर के प्रसिद्ध ज्योतिषी के पास गया। सर्वज्ञ ज्योतिषी ने उसे ऐसे मुस्कान के साथ देखा मानो वह पहले से ही इस मुलाक़ात की प्रतीक्षा कर रहा हो। बिना कोई सवाल किए उसने घोषणा की:

तुम्हारा बैल उत्तर-पश्चिम दिशा के जंगल में साल के पेड़ से बँधा है। तीन दिन से भूखा है। दो घंटे चलो, मिल जाएगा।”

आदमी अचंभित रह गया। किसी ज्योतिषी ने इतनी निश्चितता से पहले कभी नहीं कहा था। वह हँसना चाहता था, मगर हताशा संदेह को कमज़ोर कर दिया। उसने दिशा पकड़ी और लगभग चार किलोमीटर बाद घने जंगल मेंवही बैल मिला, भूखा मगर ज़िंदा। गाँव में खुशी फैल गई। ज्योतिषी का नाम देवदूत की तरह गूँजने लगा।

कहानी यहीं खत्म नहीं हुई, आगे और भी दिलचस्प वाक़या है।   

बगल के घर में तीन-तीन बच्चे साल-दर-साल मैट्रिक परीक्षा में असफल हो रहे थे—कभी गणित, कभी संस्कृत, और अंग्रेज़ी तो सबके लिए मुश्किल। पिता ग़रीबी से टूटा हुआ था, पिछले साल उसने परीक्षा-फ़ीस चुकाने को एक गाय तक बेच दी थी।

जब बच्चों ने बैल-चमत्कार की कहानी सुनी, उनके कान खड़े हो गए। दो बच्चों—उन्नीस वर्षीय भाई और अठारह वर्षीया बहन—ने तय किया कि उन्हें ज्योतिषी से परामर्श लेना चाहिए। अगर फिर असफल होना ही नियति है, तो पहले से जान लेना बेहतर, ताकि पिताजी की गाढ़ी कमाई यूँ न जाया हो।

तीसरे भाई ने उपहास किया—“मैं चाहे सत्रहवीं बार भी फ़ेल हो जाऊँ, पर किसी ज्योतिषी पर पैसे बर्बाद नहीं करूँगा।” मगर भाई-बहन अड़े रहे।

भाई-बहन साइकिल पर बीस किलोमीटर का सफ़र तय करके ज्योतिषी के पास पहुँचे। उन्होंने अपनी परेशानी बताने की शुरुआत भी न की थी कि ज्योतिषी गरज उठा: विवाह से पहले निषिद्ध कर्म करके मेरे पास क्यों आए हो? प्रेम करना एक बात है, पर पाप में क्यों पड़े?”

पहले तो भाई-बहन हक्के-बक्के रह गए। लेकिन जब ज्योतिषी ने अपना आरोप दोहराया, तो अर्थ स्पष्ट हुआ—और लज्जा ने उन्हें जला डाला। वे कोई प्रतिवाद किए बिना झटपट साइकिल पर चढ़े और भाग खड़े हुए। पीछे से ज्योतिषी की नाराज़ आवाज़ गूँजी: मेरी एक रुपया चार आना फ़ीस तो चुका दो, जिससे मैं तुम्हारा प्रायश्चित्त करता!”

दोनों घर लौटे तो भीतर तक हिल चुके थे। उन्होंने उस वाकये पर किसी से बात न की। अलबत्ता उस अपमान ने उन्हें पढ़ाई के लिए और गंभीर बना दिया। अब वे देर रात तक लालटेन की रोशनी में पढ़ते रहे। और जब नतीजे आए—चमत्कार! तीनों बच्चे पास हो गए। पड़ोसी दंग रह गए और पिता की आँखों से आँसू बह निकले।

निष्कर्ष

तो असली चमत्कार क्या था? बैल की गुमशुदगी का सही पता बताना या भाई-बहन को मिला वह झटका जिसने उनकी किस्मत बदल दी? शायद दोनों, शायद कोई भी नहीं। लेकिन इतना तय है—विश्वास, चाहे सही जगह हो या ग़लत, इंसान को अप्रत्याशित ताक़त दे सकता है।

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अनन्त नारायण नन्द 

भूबनेश्वर 

दिनांक - 15-09-2025 

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9 Comments:

Anonymous Anonymous said...

बहुत सुन्दर प्राचीन सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था को स्पष्ट करता लेख सर

8:50 AM  
Blogger The Unadorned said...

कहानी पढ़कर प्रतिक्रिया देने हेतु आपको धन्यवाद।

8:26 PM  
Anonymous Anonymous said...

O'Henry-like, these short tales are shot with surprise and meaning.

8:41 PM  
Anonymous Anonymous said...

O'Henry-like, these short tales are shot with surprise and meaning.

8:41 PM  
Blogger The Unadorned said...

Thanks, Debtoru, for your encouraging words. Keep visiting my blog, whose permanent link is https://ramblingnanda.blogspot.com

9:42 PM  
Anonymous Anonymous said...

Nicely written. It took me in my past.

11:30 PM  
Blogger The Unadorned said...

Thanks for reading and reacting to the story. 🙏

1:03 AM  
Anonymous Mahender said...

Bhot hi sunder aur pararanadayak

7:41 PM  
Blogger The Unadorned said...

धन्यवाद, महेंद्र जी।

7:50 PM  

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